कविता आज़ाद की
Monday, 1 August 2016
हार क्यूँ जाता हूँ अब हर गेम में
नफरत क्यूँ झलकती है अब उनके प्रेम में
करना चाहता हूँ वो कर नहीं सकता
ज़िन्दगी क़ैद हो गई हो जैसे शीशे के फ्रेम में
आज़ाद
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