Thursday, 18 August 2022

वो बंद खिड़की

है ये वही खिड़की 

जिससे 

आशा की किरणें 

झाँकती थी,

है ये वही कमरा 

जिसमे उम्मीदें 

पनपती थी। 


जहाँ किताबों में 

मोर पंख के साथ 

सपने सँजोए जाते थे,

चौखटे पे 

खुशियों के दिये

साँझ ढले, 

रौशन होते थे ।


खिड़कियाँ अब भी है

पर वो बंद रहते है,

कमरे में ख़ामुशी 

और सन्नाटे बसते है।


किताबें 

दीमक चाटती है,

रौशनदानों में 

मकड़ियों 

का साया है, 

क्यूँ अँधेरा अँधेरा 

अँधेरा छाया है?


आज़ाद

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