Tuesday, 24 May 2016
Monday, 23 May 2016
उंगली पकड़ के आपने.....
उंगली पकड़ के आपने, सिखाया था मुझको चलना
पंछी बनकर गगन में,
है कैसे मुझको उड़ना
बिठा के एक दिन कहा था मुझसे
आएंगे रोड़े रास्ते में, तय है तेरा गिरना
बात ये मेरी रखना हमेशा याद
गिरना, संभलना, उठना और फिर चलना...
पोछना सब की आंसुओ को
पर खुद ना कभी तू रोना
चाहे कैसा भी आये वक्त
हरदम मुस्कुराते रहना।
वेद प्रकाश साहू'आज़ाद'
(२०१५ की रचना)
ज़िन्दगी का गेम
चाहत है विनर बनने की,
तभी तो मुसीबतो को झेले जा रहा हूँ
एक लेवल पार करते ही दूसरा तैयार है,
एक लेवल पार करते ही दूसरा तैयार है,
तमाम ताक़ते मेरे खिलाफ है
मानो पहाड़ सी मंज़िल को पाने अकेले जा रहा हूँ,
टारगेट चैलेंज की तरह सामने आ रही है,
सफल होने की अंधी दौड़ में,
मानो पहाड़ सी मंज़िल को पाने अकेले जा रहा हूँ,
टारगेट चैलेंज की तरह सामने आ रही है,
सफल होने की अंधी दौड़ में,
कौन सा ये खेल मैं खेले जा रहा हूँ?
आपका आज़ाद
Wednesday, 18 May 2016
चलता जा रहा हूँ......
चलता जा रहा हूँ...
![]() |
pic by Azad |
बस चलता जा रहा हूँ...
है ये कौन सा सफ़र
ना है कोई रहबर
ना दुनिया की
ना खुद की ख़बर
रोड़े आ रहे है
ठोकर खा रहा हूँ
चलता जा रहा हूँ...
मंज़िल देखो
आँख मिचौली
तो नहीं खेल रही
या
मरीचिका तो नहीं
नहीं नहीं
दिल को समझाता
हांथो को
पंख सा फैलाता
ललक है
पाने की ऊँचाइयों को
विस्तृत गगन में
उड़ता जा रहा हूँ
चलता जा रहा हूँ...
बस चलता जा रहा हूँ...
.............................
आज़ाद
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