कहाँ चली गई हो
इस दिल को ग़म देकर
मेरे आंसुओ को भी रोके रखा
ना रोने की कसम देकर
किस खता की दे रही हो सज़ा
अपने यार को यूँ, बेरहम होकर
क्या हक़ है तुझे
ना रोने देती हो, न सोने देती हो
तड़प रहा है 'आज़ाद' अब तो
आ जाओ मेरे ज़ख्मों का मरहम लेकर
आज़ाद
(२०१२ की रचना)
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