Monday, 23 May 2016

इंतहां हो गई इन्तिज़ार की





कहाँ चली गई हो

इस दिल को ग़म देकर

मेरे आंसुओ को भी रोके रखा

ना रोने की कसम देकर




किस खता की दे रही हो सज़ा

अपने यार को यूँ, बेरहम होकर




क्या हक़ है तुझे

ना रोने देती हो, न सोने देती हो

तड़प रहा है 'आज़ाद' अब तो

आ जाओ मेरे ज़ख्मों का मरहम लेकर


आज़ाद 
(२०१२ की रचना)

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